बहुत वर्षों बाद इस नगर में आने का अवसर मिला चारों और देखा 10 वर्ष में कितना परिवर्तन हो गया था
बस्ती के लोगों के चेहरे जाने पहचाने थे लेकिन समय की मार से वह चेहरे बुड्ढे हो गए थे।मेरी निगाहें बस्ती के बीच चाय के ठेले को ढूंढ रही थी जो उन दिनों एक चाय की दुकान थी आज वह एक पक्का मकान बन चुका था हम कान के नीचे फुटपाथ से लगे एक छोटे से केबिन को देखकर मेरी दृष्टि एक पल के लिए ठिटकी।
हां वही चाय का ठेला आज साफ सुथरा केबिन बन गया था बिलासपुर छोड़ने के बाद में सब परिवार जन नगर के अपने पुश्तैनी घर में बस गया था।
आज इतने वर्षों बाद एक पारिवारिक समारोह में सम्मिलित होने आया था।
न जाने क्यों बरसों पुराना चाय का ठेला मुझे बिलासपुर की पुरानी बस्ती में खींच लाया था कि बीन पर चाय बनाते एक युवक को देखकर मेरे पैर पर बस उसकी ओर बढ़ गए।क्या तुम मनोहर नाम की किसी व्यक्ति को जानते हो युवक ने चाय को प्यालो में डालते हुए पूछा बाबूजी किसी मनोहर के लिए पूछ रहे हैं आप मुझे आवाज पहचानी सी लगी ध्यान से देख आयोग अपनी बस्ती में खोया
चाय बनाने में मशगूल था।
चेहरा भोला भला आंखों में बचपन जैसे अभी भी झूल रहा था ललाट पर खींची रे कहीं चेहरे की मासूमियत के साथ मेले नहीं खा रही थी।यह बता रही थी कि किसी कच्ची उम्र अनुभव और जीवन के थपेड़ों से गंभीर हो जाती है।
मनोहर का बचपन उसे फिर याद आ गया।
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